EN اردو
दरमियाँ ख़ुद अपनी हस्ती हो तो हम भी क्या करें | शाही शायरी
darmiyan KHud apni hasti ho to hum bhi kya karen

ग़ज़ल

दरमियाँ ख़ुद अपनी हस्ती हो तो हम भी क्या करें

ख़लील-उर-रहमान आज़मी

;

दरमियाँ ख़ुद अपनी हस्ती हो तो हम भी क्या करें
आईना देखें कि अपने-आप से पर्दा करें

When one’s being is in between what action should entail
Should one look into the mirror or else cast a veil?

हाल के सैलाब में तो बह गई माज़ी की लाश
दफ़्न अब किस की गली में हम ग़म-ए-फ़र्दा करें

In floods of present time the corpse of past is swept away
In whose street should one inter tomorrow’s sorrow say?

एक दो पल ही रहेगा सब के चेहरों का तिलिस्म
कोई ऐसा हो कि जिस को देर तक देखा करें

Each and every face shall cast its spell a moment, two
There should be someone who for long I can hold in view

ये तो सच है ज़हर लगते हैं हमें बस्ती के लोग
किस तवक़्क़ो पर मगर आबाद ये सहरा करें

Tis true that city people just as poison to me seem
On what hope this wilderness then shall I redeem?

सर-फिरे सब जम्अ हों सब के सरों पर हो चराग़
बस चले तो हम भी ऐसा जश्न इक बरपा करें

With lamps upon their head should gather people all deranged
If but I could a festival like this I’d have arranged