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दरिया में है सराब अजब इब्तिला में हूँ | शाही शायरी
dariya mein hai sarab ajab ibtila mein hun

ग़ज़ल

दरिया में है सराब अजब इब्तिला में हूँ

इब्राहीम होश

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दरिया में है सराब अजब इब्तिला में हूँ
मैं भी हुसैन ही की तरह कर्बला में हूँ

टिकते नहीं कहीं भी क़दम आरज़ूओं के
फेंका है जब से तेरी ज़मीं ने ख़ला में हूँ

आवाज़ कब से देता था हिर्मां-नसीब दिल
अब आई है तो ग़र्क़ नशात-ए-बला में हूँ

क्या फ़र्ज़ है कि ईसा-ओ-मरियम दिखाई दे
मस्लूब दर्द चीख़े कि मैं इब्तिला में हूँ

हर लहज़ा इंहिदाम का है ख़ौफ़ मुझ को 'होश'
मैं इस दयार-ए-शोर-ओ-शर-ए-ज़लज़ला में हूँ