दरिया में दश्त दश्त में दरिया सराब है
इस पूरी काएनात में कितना सराब है
रोज़ाना इक फ़क़ीर लगाता है ये सदा
दुनिया सराब है अरे दुनिया सराब है
मूसा ने एक ख़्वाब-ए-हक़ीक़त बना दिया
वैसे तो गहरे पानी में रस्ता सराब है
पूरी तरह से हाथ में आया नहीं कभी
वो हुस्न-ए-बे-मिसाल भी आधा सराब है
खुलता नहीं है रेत है पानी कि और कुछ
मेरी नज़र के सामने पहला सराब है
सुरज की तेज़ धूप में धोका हर एक शय
काली घटा सी रात में साया सराब है
ग़ज़ल
दरिया में दश्त दश्त में दरिया सराब है
अहमद ख़याल