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दरिया में बहुत कुछ है रवानी के अलावा | शाही शायरी
dariya mein bahut kuchh hai rawani ke alawa

ग़ज़ल

दरिया में बहुत कुछ है रवानी के अलावा

खुर्शीद अकबर

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दरिया में बहुत कुछ है रवानी के अलावा
मुद्दत से मैं सैराब हूँ पानी के अलावा

ऐ शहर-ए-सितम-ज़ाद तिरी उम्र बड़ी हो
कुछ और बता नक़्ल-ए-मकानी के अलावा

ईमान-शिकन पैकर-ए-दोशीज़ा-ए-आलम
सब कुछ है तिरे पास जवानी के अलावा

किस अहद-ए-गुनहगार ने ली आख़िरी हिचकी
मसरूफ़ हैं सब फ़ातिहा-ख़्वानी के अलावा

रंगों को बरतने का हुनर सीख चुका हूँ
क्या चाहिए अब तेरी निशानी के अलावा

दुनिया से तअ'ल्लुक़ का सबब किस को बताऊँ
अब दोस्त कहाँ दुश्मन-ए-जानी के अलावा

क्या दूँ तुझे जाती हुई जाँ-बाज़ बहारो
कुछ पास नहीं बर्ग-ए-ख़िज़ानी के अलावा

हर शख़्स मुदावा है अक़ीदत से है बे-ज़ार
मोहलत है किसे पीर-ए-मुग़ानी के अलावा

अशआ'र कहाँ देते हैं मुँह देखी गवाही
'ख़ुर्शीद' कहाँ नूर-ए-मआ'नी के अलावा