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दरिया-ए-आफ़्ताब की तुग़्यानियत न देख | शाही शायरी
dariya-e-aftab ki tughyaniyat na dekh

ग़ज़ल

दरिया-ए-आफ़्ताब की तुग़्यानियत न देख

क़ौस सिद्दीक़ी

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दरिया-ए-आफ़्ताब की तुग़्यानियत न देख
अपना वजूद आप पस-ए-आफ़ियत न देख

आँखें सियाह नुक़्तों से आगे न बढ़ सकीं
आईना-ए-ख़याल की मसरूफ़ियत न देख

ये देख अब सवाल-ए-बक़ा-ए-यक़ीन है
टूटे हुए गुमान की मासूमियत न देख

आदाब-ए-हर-शिकस्ता-लबी का लिहाज़ रख
हर बात में नज़ाकत-ए-गुफ़्तारियत न देख

जमते हुए ग़ुबार का साया न सर पे रख
ऐ 'क़ौस' उड़ती गर्द की दीवारियत न देख