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दरीदा-पैरहनों में शुमार हम भी हैं | शाही शायरी
darida-pairahanon mein shumar hum bhi hain

ग़ज़ल

दरीदा-पैरहनों में शुमार हम भी हैं

अज़्म शाकरी

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दरीदा-पैरहनों में शुमार हम भी हैं
बहुत दिनों से अना के शिकार हम भी हैं

फ़क़त तुम्हीं को नहीं इश्क़ में ये दर-बदरी
तुम्हारी चाह में गर्द-ओ-ग़ुबार हम भी हैं

चढ़ी जो धूप तो होश-ओ-हवास खो बैठे
जो कह रहे थे शजर साया-दार हम भी हैं

बुलंदियों के निशाँ तक न छू सके वो लोग
जिन्हें गुमाँ था हवा पे सवार हम भी हैं

जो ख़स्ता-हाली में दरवेश का मुक़द्दर थी
उसी क़बा की तरह तार-तार हम भी हैं