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दरीचों में चराग़ों की कमी महसूस होती है | शाही शायरी
darichon mein charaghon ki kami mahsus hoti hai

ग़ज़ल

दरीचों में चराग़ों की कमी महसूस होती है

अज़हर अदीब

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दरीचों में चराग़ों की कमी महसूस होती है
यहाँ तो फिर हवा की बरहमी महसूस होती है

वो अब भी गुफ़्तुगू करता है पहले की तरह लेकिन
ज़रा सी बर्फ़ लहजे में जमी महसूस होती है

तिरे वा'दे का साया हो तो सहरा के सफ़र में भी
झुलसती लौ हवा-ए-शबनमी महसूस होती है

तो क्या मैं ज़ब्त के मेआ'र पर पूरा नहीं उतरा
तो क्या मेरी इन आँखों में नमी महसूस होती है

न जाने तेरी हालत क्या है उस को देख कर 'अज़हर'
मुझे तो दिल की धड़कन भी थमी महसूस होती है