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डरे हुए हैं सभी लोग अब्र छाने से | शाही शायरी
Dare hue hain sabhi log abr chhane se

ग़ज़ल

डरे हुए हैं सभी लोग अब्र छाने से

अज़हर फ़राग़

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डरे हुए हैं सभी लोग अब्र छाने से
वो आई बाम पे क्या धूप के बहाने से

वो क़िस्सा-गो तो बहुत जल्द-बाज़ आदमी था
बहुत सी लकड़ियाँ हम रह गए जलाने से

नज़र तो डाल रवानी की इस्तक़ामत पर
ये आबशार है कोहसार के घराने से

मुसाफ़िरान-ए-मोहब्बत मुझे मुआ'फ़ करें
मैं बाज़ आया उन्हें रास्ता दिखाने से

अगर मैं आख़िरी बाज़ी न खेलता 'अज़हर'
तो ख़ाली हाथ न आता क़िमार-ख़ाने से