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दर्द से दिल ने वास्ता रक्खा | शाही शायरी
dard se dil ne wasta rakkha

ग़ज़ल

दर्द से दिल ने वास्ता रक्खा

अातिश इंदौरी

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दर्द से दिल ने वास्ता रक्खा
वक़्त बदलेगा हौसला रक्खा

रो दिए मेरे हाल पे पंछी
चुगने जब सिर्फ़ बाजरा रक्खा

मैं परिंदा बना हूँ जब से तू
सरहदों से न वास्ता रक्खा

धोका अक्सर मिले है अपनों से
अपनों से थोड़ा फ़ासला रक्खा

ताकि निकलें नहीं मिरे आँसू
दर्द सहने का सिलसिला रक्खा

मंदिरों मस्जिदों में ढूँढे कौन
इस लिए दिल में इक ख़ुदा रक्खा

तोड़ देते जो हौसला 'आतिश'
उन ख़यालों से फ़ासला रक्खा