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दर्द-ओ-ग़म सब सुनाने बैठे हैं | शाही शायरी
dard-o-gham sab sunane baiThe hain

ग़ज़ल

दर्द-ओ-ग़म सब सुनाने बैठे हैं

रज़ी रज़ीउद्दीन

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दर्द-ओ-ग़म सब सुनाने बैठे हैं
छेड़ अपने फ़साने बैठे हैं

आशियाँ को जला के जी न भरा
अब वो हम को जलाने बैठे हैं

तुम न थे तो यहाँ पे कोई न था
आज कितने दिवाने बैठे हैं

इस फ़क़ीरी की पादशाही तो देख
फ़र्श को अर्श माने बैठे हैं

आस्ताना तिरा ख़ुदा का घर
और हम आज़माने बैठे हैं