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दर्द-ओ-ग़म रंज-ओ-अलम आह-ओ-फ़ुग़ाँ | शाही शायरी
dard-o-gham ranj-o-alam aah-o-fughan

ग़ज़ल

दर्द-ओ-ग़म रंज-ओ-अलम आह-ओ-फ़ुग़ाँ

योगेन्द्र बहल तिश्ना

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दर्द-ओ-ग़म रंज-ओ-अलम आह-ओ-फ़ुग़ाँ
सरगुज़श्त-ए-इश्क़ की हैं सुर्ख़ियाँ

दिल है मेरा माइल-ए-फ़रियाद आज
देख कर उन के तग़ाफ़ुल का समाँ

इक ज़रा रुक जाइए सुन लीजिए
इस दिल-ए-रंजूर की भी दास्ताँ

आप ने तो इक नज़र देखा फ़क़त
जल गया ताब-ओ-तवाँ का आशियाँ

ऐ दिल-ए-ग़म-गीं न रो इस दौर में
कौन सुनता है किसी की दास्ताँ

आतिश-ए-उल्फ़त तो कब की जल बुझी
रात दिन सीने से उठता है धुआँ

नज़्म-ए-मय-खाना बदल कर रख दें हम
आओ ऐ ज़िंदा-दिलाँ 'तिश्ना'-लबाँ