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दर्द में शिद्दत-ए-एहसास नहीं थी पहले | शाही शायरी
dard mein shiddat-e-ehsas nahin thi pahle

ग़ज़ल

दर्द में शिद्दत-ए-एहसास नहीं थी पहले

शकील आज़मी

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दर्द में शिद्दत-ए-एहसास नहीं थी पहले
ज़िंदगी राम का बन-बास नहीं थी पहले

हम भी सौ जाते थे मा'सूम फ़रिश्तों की तरह
और ये रात भी हस्सास नहीं थी पहले

हम ने इस बार तुझे जिस्म से हट कर सोचा
शाइ'री रूह की अक्कास नहीं थी पहले

तेरी फ़ुर्क़त ही उदासी का सबब है अब के
तेरी क़ुर्बत भी हमें रास नहीं थी पहले

तेरी आँखों ने कहीं का नहीं रखा हम को
इतनी शिद्दत की हमें प्यास नहीं थी पहले

राह चलते हुए हम मुड़ के नहीं देखते थे
रास्ते में तिरी बू-बास नहीं थी पहले