दर्द लेंगे न हम दवा लेंगे
अपने हिस्से की कुछ सज़ा लेंगे
बात वो जो कभी हुई ही नहीं
हम उसी बात का मज़ा लेंगे
लोग वैसे भी आज़माते हैं
लोग ऐसे भी आज़मा लेंगे
काँच सा दिल कहाँ पे रख्खोगे
लोग पत्थर अगर उठा लेंगे
तुम भी सूरज को सामने रखना
हम भी अपने दिए जला लेंगे
वो अगर बन गया कोई मंज़र
हम उसे आँख में सजा लेंगे
वो उजाला है हम उजाले को
दिल-ए-तारीक में छुपा लेंगे
ग़ज़ल
दर्द लेंगे न हम दवा लेंगे
अशरफ़ नक़वी