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दर्द की जोत मिरे दिल में जगाने वाले | शाही शायरी
dard ki jot mere dil mein jagane wale

ग़ज़ल

दर्द की जोत मिरे दिल में जगाने वाले

असरा रिज़वी

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दर्द की जोत मिरे दिल में जगाने वाले
रोज़ पैग़ाम नया दे के रुलाने वाले

कैसे लिख दूँ मैं तिरे नाम फ़साना कोई
बीच मंजधार में कुश्ती को डुबाने वाले

न कोई अक्स न ज़ंगार रहा मेरे लिए
रूह के शीशे को शफ़्फ़ाफ़ बनाने वाले

क्या नहीं लिक्खा निगाहों को रहीन-ए-जल्वा
अपनी तहरीर से तक़दीर सजाने वाले

मिस्ल-ए-परवाना तड़पने के लिए छोड़ दिया
शम-ए-गुमनाम से जज़्बों को जलाने वाले

किसी ता'बीर को तकमील तो पा जाने दे
ख़्वाब हर रोज़ नया मुझ को दिखाने वाले

अज़्म-ए-मोहकम लिए मैं पेश नज़र आई हूँ
तीर अल्फ़ाज़ का बे-ख़ौफ़ चलाने वाले

वक़्त अब भी है सँभल जाओ ये दुनिया है फ़रेब
प्यार के ढोंग में लोगों को फँसाने वाले

वक़्त अब दूर नहीं है कि उठे शोर-ए-ग़ज़ब
ग़म के सैलाब में दुनिया को बहाने वाले