दर्द की दौलत-ए-बेदार अता हो साक़ी 
हम बही-ख़्वाह सभी के हैं भला हो साक़ी 
सख़्त-जाँ ही नहीं हम ख़ुद-सर-ओ-ख़ुद्दार भी हैं 
नावक-ए-नाज़ ख़ता है तो ख़ता हो साक़ी 
सई-ए-तदबीर में मुज़्मर है इक आह-ए-जाँ-सोज़ 
उस का इनआ'म सज़ा हो कि जज़ा हो साक़ी 
सीना-ए-शौक़ में वो ज़ख़्म कि लौ दे उठ्ठे 
और भी तेज़ ज़माने की हवा हो साक़ी
        ग़ज़ल
दर्द की दौलत-ए-बेदार अता हो साक़ी
असरार-उल-हक़ मजाज़

