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दर्द के सीप में पैदा हुई बेदारी सी | शाही शायरी
dard ke sip mein paida hui bedari si

ग़ज़ल

दर्द के सीप में पैदा हुई बेदारी सी

हज़ीं लुधियानवी

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दर्द के सीप में पैदा हुई बेदारी सी
रात की राख में सुलगी कोई चिंगारी सी

देखिए शहर में कब बाद-ए-यक़ीं चलती है
कू-ब-कू फैली है औहाम की बीमारी सी

मौत का वार तो में सह गया हँसते हँसते
ज़िंदगी तू ही कोई चोट लगा कारी सी

क्या से क्या हो गई माहौल की लौ में जल कर
वो जो लड़की नज़र आती थी बहुत प्यारी सी

जितने मुफ़्लिस हैं वो एक रोज़ तवंगर होंगे
एक अफ़्वाह सुनी है मगर अख़बारी सी