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दर्द का जब तक मज़ा हासिल न था | शाही शायरी
dard ka jab tak maza hasil na tha

ग़ज़ल

दर्द का जब तक मज़ा हासिल न था

इरम लखनवी

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दर्द का जब तक मज़ा हासिल न था
दिल कहे जाने के क़ाबिल दिल न था

हाए उन मजबूरियों को क्या करूँ
मैं भी ख़ुद फ़रियाद के क़ाबिल न था

भीक रख लो जो दुआएँ दे गया
वो फ़क़ीर-ए-इश्क़ था साइल न था

ओ लुटाने वाले गुल-हा-ए-करम
सब का दिल था क्या हमारा दिल न था

जाँ बुरी मुश्किल भी हम को ऐ 'इरम'
वो बचा लेते तो कुछ मुश्किल न था