दर्द इस दर्जा मिले ज़ब्त में कामिल हुआ मैं
उस को पाने की तलब में किसी क़ाबिल हुआ मैं
फ़ोन पर बात हुई उस से तो अंदाज़ा हुआ
अपनी आवाज़ में बस आज ही शामिल हुआ मैं
रो के अक्सर मैं हँसा हँस के मैं रोया भी अगर
ज़िंदगी तुझ में तो हर रंग में शामिल हुआ मैं
ज़िंदगी चैन की सब को ही भली लगती है
कैसे हालात थे मेरे कि जो क़ातिल हुआ मैं
देखना चाहूँगा मैं तुझ को क़रीब और इस से
आज के ब'अद कभी ख़ुद को जो हासिल हुआ मैं
कोई समझे या न समझे इन्हें पढ़ने वाला
शेर कह कर ये कठिन ख़ुद पे ही माइल हुआ मैं
ग़ज़ल
दर्द इस दर्जा मिले ज़ब्त में कामिल हुआ मैं
नवनीत शर्मा