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दर्द-ए-विरासत पा लेने से नाम नहीं चल सकता | शाही शायरी
dard-e-wirasat pa lene se nam nahin chal sakta

ग़ज़ल

दर्द-ए-विरासत पा लेने से नाम नहीं चल सकता

अंजुम सलीमी

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दर्द-विरासत पा लेने से नाम नहीं चल सकता
इश्क़ में बाबा एक जनम से काम नहीं चल सकता

बहुत दिनों से मुझ में है कैफ़िय्यत रोने वाली
दर्द-ए-फ़रावाँ सीने में कोहराम नहीं चल सकता

तोहमत-ए-इश्क़ मुनासिब है और हम पर जचती है
हम ऐसों पर और कोई इल्ज़ाम नहीं चल सकता

चम चम करते हुस्न की तुम जो अशरफ़ियाँ लाए हो
इस मीज़ान में ये दुनियावी दाम नहीं चल सकता

आँख झपकने की मोहलत भी कम मिलती है 'अंजुम'
फ़क़्र में कोई तन-आसाँ दो-गाम नहीं चल सकता