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दर्द-ए-दिल ला-दवा नहीं होता | शाही शायरी
dard-e-dil la-dawa nahin hota

ग़ज़ल

दर्द-ए-दिल ला-दवा नहीं होता

ख़ालिद महमूद अमर

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दर्द-ए-दिल ला-दवा नहीं होता
हाँ मगर हौसला नहीं होता

ग़म ख़ुशी रंग ज़िंदगी के हैं
रात बिन दिन नया नहीं होता

रौशनी से छुपाते हैं चेहरे
जब अँधेरा ज़रा नहीं होता

चंद यादें हैं कुछ जवाँ सोचें
कौन तन्हा सदा नहीं होता

ठहरे पानी तो गदले होते हैं
क्यूँ कहूँ वो जुदा नहीं होता

रहते हैं एक घर में ही लेकिन
मुद्दतों सामना नहीं होता

मुस्कुराऊँ तो सब 'उमर' हमदम
ग़म में इक आश्ना नहीं होता