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दर्द-ए-दिल की उन्हें ख़बर न हुई | शाही शायरी
dard-e-dil ki unhen KHabar na hui

ग़ज़ल

दर्द-ए-दिल की उन्हें ख़बर न हुई

शोला करारवी

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दर्द-ए-दिल की उन्हें ख़बर न हुई
आह मिन्नत-कश-ए-असर न हुई

अपनी तक़दीर राह पर न हुई
कोई तदबीर कारगर न हुई

जुर्म-ए-उल्फ़त से झुक गईं आँखें
चार उन से मिरी नज़र न हुई

नज़्अ' में वो न आए बालीं पर
मौत भी मेरी मो'तबर न हुई

देखते हैं सभी नज़र उन की
और अपनी नज़र नज़र न हुई

यूँ तमन्ना के फूल मुरझाए
शाख़-ए-उम्मीद बारवर न हुई

उन से मिलने की आरज़ू पूरी
हश्र से वो भी पेशतर न हुई

हिज्र की शब मरीज़-ए-फ़ुर्क़त ने
जान दे दी मगर सहर न हुई

ऐसे जीने से मौत बेहतर है
ज़िंदगी ज़िंदगी अगर न हुई

सैकड़ों इंक़लाब आए मगर
दिल की दुनिया इधर-उधर न हुई

लाख साइंस ने तरक़्क़ी की
दस्तरस मौत पर मगर न हुई

क्या करें शरह-ए-हाल-ए-दिल 'शो'ला'
ग़म की रूदाद मुख़्तसर न हुई