EN اردو
दर्द-ए-दिल की दवा न हो जाए | शाही शायरी
dard-e-dil ki dawa na ho jae

ग़ज़ल

दर्द-ए-दिल की दवा न हो जाए

जिगर जालंधरी

;

दर्द-ए-दिल की दवा न हो जाए
ज़िंदगी बे-मज़ा न हो जाए

लुत्फ़ देती है क्या उमीद-ए-वफ़ा
बेवफ़ा बा-वफ़ा न हो जाए

कैसे बेताब उन को देखूँगा
आह यारब रसा न हो जाए

दिल में हसरत बसा तो ली है मगर
ये कड़ी सिलसिला न हो जाए

अपनी दुनिया उसी से रौशन है
गुल चराग़-ए-वफ़ा न हो जाए

हम सितम को करम समझते हैं
उन पे ये राज़ वा न हो जाए

इक ज़माना है उस का दीवाना
कहीं वो बुत ख़ुदा न हो जाए

दिल ही सब से बड़ा सहारा है
दिल किसी से जुदा न हो जाए

तुम अगर छू लो अपने होंटों से
शेर मेरा तिरा न हो जाए

दिल लुटा कर 'जिगर' हमारी तरह
कोई बे-आसरा न हो जाए