दर्द-ए-दिल की दवा न हो जाए
ज़िंदगी बे-मज़ा न हो जाए
लुत्फ़ देती है क्या उमीद-ए-वफ़ा
बेवफ़ा बा-वफ़ा न हो जाए
कैसे बेताब उन को देखूँगा
आह यारब रसा न हो जाए
दिल में हसरत बसा तो ली है मगर
ये कड़ी सिलसिला न हो जाए
अपनी दुनिया उसी से रौशन है
गुल चराग़-ए-वफ़ा न हो जाए
हम सितम को करम समझते हैं
उन पे ये राज़ वा न हो जाए
इक ज़माना है उस का दीवाना
कहीं वो बुत ख़ुदा न हो जाए
दिल ही सब से बड़ा सहारा है
दिल किसी से जुदा न हो जाए
तुम अगर छू लो अपने होंटों से
शेर मेरा तिरा न हो जाए
दिल लुटा कर 'जिगर' हमारी तरह
कोई बे-आसरा न हो जाए

ग़ज़ल
दर्द-ए-दिल की दवा न हो जाए
जिगर जालंधरी