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दर्द-ए-दिल के लिए कुछ ऐसी दवा ली हम ने | शाही शायरी
dard-e-dil ke liye kuchh aisi dawa li humne

ग़ज़ल

दर्द-ए-दिल के लिए कुछ ऐसी दवा ली हम ने

सत्य नन्द जावा

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दर्द-ए-दिल के लिए कुछ ऐसी दवा ली हम ने
टीस गर कम भी हुई और बढ़ा ली हम ने

अपने अश्कों को तबस्सुम से छुपाया जैसे
जिस्म उर्यां था तो पारीना क़बा ली हम ने

उम्र-भर शहर-ए-निगाराँ में वफ़ा को तरसे
अपनी ना-कर्दा गुनाही की सज़ा ली हम ने

चीख़ते लम्हों से अंदर का न रिश्ता टूटा
वर्ना बाहर की तो ख़ामोश फ़ज़ा ली हम ने

एक महशर सा बपा था कई आवाज़ों का
बोलना चाहा तो माँगे की सदा ली हम ने