EN اردو
दर्द-ए-दिल का किसे करूँ इज़हार | शाही शायरी
dard-e-dil ka kise karun izhaar

ग़ज़ल

दर्द-ए-दिल का किसे करूँ इज़हार

क़ासिम अली ख़ान अफ़रीदी

;

दर्द-ए-दिल का किसे करूँ इज़हार
ग़म-ए-हिज्रत ब-जान-ए-मन बिसयार

नर्गिसी चश्म को कहाँ पाऊँ
जिसे तस्कीं हो ख़ातिर-ए-अफ़गार

रख्खूँ अपना कफ़न सिलाने को
पाऊँ गर मू-ए-ज़ुल्फ़ का यक-तार

बाक़ी अरमाँ रहा ब-दिल अफ़्सोस
जान जाती है यार यार पुकार

सनमा ज़ालिमाँ सता ले आ
मुंतज़िर कोई दम रहा बे-शुमार

देखना देख ले दिखा सूरत
वर्ना फिर मैं कहाँ कहाँ तू यार

'आफ़रीदी' गिरा ब-चाह-ए-ज़नख़
माह-ए-कनआ'न की तरह लाचार