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दर्द-ए-दिल भी कभी लहू होगा | शाही शायरी
dard-e-dil bhi kabhi lahu hoga

ग़ज़ल

दर्द-ए-दिल भी कभी लहू होगा

साहिर होशियारपुरी

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दर्द-ए-दिल भी कभी लहू होगा
कोई अरमाँ तो सुर्ख़-रू होगा

आरज़ू कोई बर न आएगी
यही अंजाम-ए-आरज़ू होगा

देख कर मेरे दिल की बर्बादी
कौन शैदा-ए-रंग-ओ-बू होगा

आईने में हमें वो देखेंगे
आईना उन के रू-ब-रू होगा

हम न होंगे तो ऐ ग़म-ए-जानाँ
किस को यारा-ए-आरज़ू होगा

कुछ तो फ़रमाएँ आप तुम या तू
कुछ तो अंदाज़-ए-गुफ़्तुगू होगा

उन के अंदाज़ा-ए-करम के लिए
हर नफ़स वक़्फ़-ए-आरज़ू होगा

ताब-ए-नज़्ज़ारा-ए-जमाल किसे
एक मैं हूँगा एक तू होगा

मेरे आते ही बज़्म साक़ी में
सब के लब पर सुबू सुबू होगा

हर्फ़-ए-मतलब ज़बाँ पे क्यूँ आए
ये तो इज़हार-ए-आरज़ू होगा

मंज़िलों से गुज़र के भी 'साहिर'
दिल का मक़्सूद जुस्तुजू होगा