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दर्द दिल में मगर लब पे मुस्कान है | शाही शायरी
dard dil mein magar lab pe muskan hai

ग़ज़ल

दर्द दिल में मगर लब पे मुस्कान है

नीरज गोस्वामी

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दर्द दिल में मगर लब पे मुस्कान है
हौसलों की हमारे ये पहचान है

लाख कोशिश करो आ के जाती नहीं
याद इक बिन बुलाई सी मेहमान है

खिलखिलाता है जो आज के दौर में
इक अजूबे से क्या कम वो इंसान है

ज़र ज़मीं सल्तनत से ही होता नहीं
जो दे भूके को रोटी, वो सुल्तान है

मीर, तुलसी, ज़फ़र, जोश, मीरा, कबीर
दिल ही 'ग़ालिब' है और दिल ही 'रसखा़न' है

पाँच करता है जो, दो में दो जोड़ कर
आज-कल सिर्फ़ उस का ही गुन-गान है

ढूँडता फिर रहा फूल पर तितलियाँ
शहर में वो नया है कि नादान है

गर न समझा तो 'नीरज' लगेगी कठिन
ज़िंदगी को जो समझा तो आसान है