दर्द बढ़ता ही रहे ऐसी दवा दे जाओ
कुछ न कुछ मेरी वफ़ाओं का सला दे जाओ
यूँ न जाओ कि मैं रो भी न सकूँ फ़ुर्क़त में
मेरी रातों को सितारों की ज़िया दे जाओ
एक बार आओ कभी इतने अचानक-पन से
ना-उमीदी को तहय्युर की सज़ा दे जाओ
दुश्मनी का कोई पैराया-ए-नादिर ढूँडो
जब भी आओ मुझे जीने की दुआ दे जाओ
वही इख़्लास-ओ-मुरव्वत की पुरानी तोहमत
दोस्तो कोई तो इल्ज़ाम नया दे जाओ
कोई सहरा भी अगर राह में आए 'अनवर'
दिल ये कहता है कि इक बार सदा दे जाओ
ग़ज़ल
दर्द बढ़ता ही रहे ऐसी दवा दे जाओ
अनवर मसूद