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दर्द अपना था तो इस दर्द को ख़ुद सहना था | शाही शायरी
dard apna tha to is dard ko KHud sahna tha

ग़ज़ल

दर्द अपना था तो इस दर्द को ख़ुद सहना था

राशिद आज़र

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दर्द अपना था तो इस दर्द को ख़ुद सहना था
न किसी और से दुख अपना कभी कहना था

ग़लती की कि मुरव्वत में मुसीबत झेली
ज़ुल्म बर्दाश्त ही करना था न चुप रहना था

अश्क बन कर जो न बहता तो रगों में बहता
किसी सूरत से लहू था तो उसे बहना था

शुबह होता था कि है रंग-ए-बदन या मल्बूस
बे-लिबासी थी लिबास उस ने कहाँ पहना था

मैं जो मर जाऊँ तो सब लोग कहेंगे 'आज़र'
इतनी बोसीदा इमारत थी इसे ढहना था