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दर तख़य्युल के मुक़फ़्फ़ल नहीं होने देता | शाही शायरी
dar taKHayyul ke muqaffal nahin hone deta

ग़ज़ल

दर तख़य्युल के मुक़फ़्फ़ल नहीं होने देता

महताब अालम

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दर तख़य्युल के मुक़फ़्फ़ल नहीं होने देता
मैं तुझे आँख से ओझल नहीं होने देता

नींद आती है तो आँखों में जगह देता हूँ
अपनी पलकों को मैं बोझल नहीं होने देता

किस को सैराब करेगा वो छलकता बादल
जो मरी प्यास को जल-थल नहीं होने देता

छीन लेता है मुसव्विर के सभी होश-ओ-हवास
हुस्न तस्वीर मुकम्मल नहीं होने देता

किस को इफ़्लास ने रक्खा है शगुफ़्ता-ख़ातिर
ये तो बच्चों को भी चंचल नहीं होने देता

कोई काँधे पे मिरे हाथ धरे है 'महताब'
ये तख़य्युल मुझे पागल नहीं होने देता