दर-ओ-दीवार पर साया पड़ा है
हवाओं में नमी का ज़ाइक़ा है
कोई तूफ़ान है कच्चा घड़ा है
निगाह-ए-शौक़ मंज़िल-आश्ना है
वही कुंज-ए-क़फ़स है और हम हैं
वही उम्मीद का जलता दिया है
मैं आईने में ख़ुद को खोजता हूँ
ये गाँव कब का ख़ाली हो चुका है
दिसम्बर की कहानी और कुछ थी
मिरे दिल का उजड़ना हादिसा है
ग़म-ए-उक़्बा ग़म-ए-दौराँ ग़म-ए-दिल
हमें कितना बनाया जा रहा है
यहाँ इंसान बोए जा रहे हैं
ये जंगल इस लिए काटा गया है
क़बीला क़ाफ़िला क़ैदी क़तारें
ये मंज़र शाम तक फैला हुआ है
ये रस्ता दूर तक जाता है 'राहिल'
हमें पीछे भी मुड़ कर देखना है

ग़ज़ल
दर-ओ-दीवार पर साया पड़ा है
राहिल बुख़ारी