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दर-ओ-दीवार ख़ुद-कुशी कर लें | शाही शायरी
dar-o-diwar KHud-kushi kar len

ग़ज़ल

दर-ओ-दीवार ख़ुद-कुशी कर लें

इफ़्तिख़ार फलक काज़मी

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दर-ओ-दीवार ख़ुद-कुशी कर लें
हम जो नाचार ख़ुद-कुशी कर लें

फिर न कहना मज़ाक़ था प्यारे
वाक़ई यार ख़ुद-कुशी कर लें

काम करना ही शर्त है तो फिर
क्यूँ न इस बार ख़ुद-कुशी कर लें

जिन चराग़ों को मौत का डर है
वो सर-ए-दार ख़ुद-कुशी कर लें

उस से पहले कि सामईं स्वयं
अहम किरदार ख़ुद-कुशी कर लें

जो हैं नादाँ वो ज़िंदगी झेलें
और समझदार ख़ुद-कुशी कर लें

मैं तो कहता हूँ जोश की मानें
सब कलम-कार ख़ुद-कुशी कर लें