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दम साध के देखूँ तुझे झपकूँ न पलक भी | शाही शायरी
dam sadh ke dekhun tujhe jhapkun na palak bhi

ग़ज़ल

दम साध के देखूँ तुझे झपकूँ न पलक भी

ख़ालिद अहमद

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दम साध के देखूँ तुझे झपकूँ न पलक भी
आँखों में समो लूँ तिरे लहजे की दमक भी

ऐ इश्क़ अगर मुझ को तिरा इज़्न हो मुमकिन
आग़ोश में ले लूँ तिरे पैकर की महक भी

ऐ ज़िक्र मिरे फ़िक्र की तक़दीर बदल दे
ऐ नूर मिरे नुत्क़ के कासे में झलक भी

ऐ क़तरा-ए-ख़ूँ मुसहफ़-ए-रुख़्सार पे तिल बिन
ऐ सत्र-ए-तपाँ काग़ज़-ए-सादा पे दहक भी

दिल अर्ज़-ए-हुनर है तो बदन अर्ज़-ए-हुनर है
ऐ मेरे दिल-ए-सादा मिरे तन में धड़क भी

ये रंग मिरे नूर में रक्खे हैं उसी ने
गुँधवाई थी जिस ने मिरी मिट्टी की महक भी

उस शहर की जानिब मिरे पाँव नहीं उठते
इस दिल से वही दूर करेगा ये झिजक भी

क्या मैं ने किया है कि सज़ा-वार-ए-रिदा हूँ
मुझ को तो बहुत है तिरी कमली की झलक भी