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दम-ए-यार ता-नज़'अ भर लीजिए | शाही शायरी
dam-e-yar ta-naza bhar lijiye

ग़ज़ल

दम-ए-यार ता-नज़'अ भर लीजिए

सख़ी लख़नवी

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दम-ए-यार ता-नज़'अ भर लीजिए
'सख़ी' ज़िंदगी तक तो मर लीजिए

दिया दिल तो कहने लगे फेंक कर
कलेजे में अपने ये धर लीजिए

मिरी लाग़री पर तो हँसते हैं आप
कमर की तो अपनी ख़बर लीजिए

अजल आए पीछा छुटते शहर का
कहीं चल के जंगल में घर लीजिए

'सख़ी' हिज्र-ए-जानाँ में खाना कहाँ
ग़म-ओ-दर्द से पेट भर लीजिए