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दम-ब-ख़ुद गुलशनों की रानाई | शाही शायरी
dam-ba-KHud gulshanon ki ranai

ग़ज़ल

दम-ब-ख़ुद गुलशनों की रानाई

परवीन फ़ना सय्यद

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दम-ब-ख़ुद गुलशनों की रानाई
कैसी खोई हुई बहार आई

तुम को सौदा-ए-महफ़िल-आराई
और हमें जुस्तुजू-ए-तन्हाई

राहतें तुम को रंज हम को अज़ीज़
अपनी अपनी नज़र की गहराई

कितनी बेगानगी से देखते हो
जब ग़म-ए-ज़िंदगी की बात आई

ज़ख़्म-दर-ज़ख़्म है हयात 'फ़ना'
कैसे कर पाओगे मसीहाई