दहन-ए-मेहमान में काँटे
पहलू-ए-मेज़बान में काँटे
ख़ून थूकेगा जो भी खाएगा
आप के ख़ास-दान में काँटे
ख़ूब-रूओं का क्या भरोसा है
आन में फूल आन में काँटे
गुल-ए-रुख़्सार की हिफ़ाज़त को
उस ने लटकाए कान में काँटे
चुभ रहे हैं मिरे ख़यालों को
बाग़-ए-जन्नत-निशान में काँटे
मुस्कुराती ख़मोशियाँ उस की
मेरे तर्ज़-ए-बयान में काँटे
हसरतें और इज्ज़-गोयाई
दिल में काँटे ज़बान में काँटे
रेत में रुल के चल गए जौहर
जौहरी की दुकान में काँटे
राक्षस बन गए महा-जोगी
ज्ञान में और ध्यान में काँटे
कभी होती थी एड़ियों में ख़लिश
अब तो हैं जिस्म-ओ-जान में काँटे
कितना मुश्किल हुआ है रिज़्क़-ए-हलाल
शोरबे और नान में काँटे
चुनने वाला कोई नहीं 'सय्यद'
और भरे हैं जहान में काँटे
ग़ज़ल
दहन-ए-मेहमान में काँटे
मुज़फ्फर अली सय्यद