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दहकते कुछ ख़याल हैं अजीब अजीब से | शाही शायरी
dahakte kuchh KHayal hain ajib ajib se

ग़ज़ल

दहकते कुछ ख़याल हैं अजीब अजीब से

अकबर हैदराबादी

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दहकते कुछ ख़याल हैं अजीब अजीब से
कि ज़ेहन में सवाल हैं अजीब अजीब से

था आफ़्ताब सुब्ह कुछ तो शाम को कुछ और
उरूज और ज़वाल हैं अजीब अजीब से

हर एक शाहराह पर दुकानों में सजे
तरह तरह के माल हैं अजीब अजीब से

वो पास हो के दूर है तो दूर हो के पास
फ़िराक़ और विसाल हैं अजीब अजीब से

निकलना इन से बच के सहल इस क़दर नहीं
क़दम क़दम पे जाल हैं अजीब अजीब से

अदब फ़क़त अदब है? या है तर्जुमान-ए-ज़ीस्त?
मिरे यही सवाल हैं अदीब अदीब से