दफ़अ'तन बिछड़ेगा वो भी दिल को ये धड़का न था
जो मिरे हमराह था लेकिन मिरा साया न था
सोच का तूफ़ान शादाबी बहा कर ले गया
ऐसा लगता है कि ये चेहरा कभी मेरा न था
मौसम-ए-गुल में हवाएँ जैसे पथराई रहीं
ख़ुशबुओं का कोई झोंका इस तरफ़ आया न था
यूँ अचानक जाग जाने की मुझे आदत न थी
और उस को भी शिकस्त-ए-ख़्वाब का ख़दशा न था
आज ता-हद्द-ए-नज़र बे-कैफ़ 'मंज़र' हो गया
इस तरह रंगों को सूरज ने कभी खाया न था

ग़ज़ल
दफ़अ'तन बिछड़ेगा वो भी दिल को ये धड़का न था
जावेद मंज़र