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दफ़अ'तन बिछड़ेगा वो भी दिल को ये धड़का न था | शाही शायरी
dafatan bichhDega wo bhi dil ko ye dhaDka na tha

ग़ज़ल

दफ़अ'तन बिछड़ेगा वो भी दिल को ये धड़का न था

जावेद मंज़र

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दफ़अ'तन बिछड़ेगा वो भी दिल को ये धड़का न था
जो मिरे हमराह था लेकिन मिरा साया न था

सोच का तूफ़ान शादाबी बहा कर ले गया
ऐसा लगता है कि ये चेहरा कभी मेरा न था

मौसम-ए-गुल में हवाएँ जैसे पथराई रहीं
ख़ुशबुओं का कोई झोंका इस तरफ़ आया न था

यूँ अचानक जाग जाने की मुझे आदत न थी
और उस को भी शिकस्त-ए-ख़्वाब का ख़दशा न था

आज ता-हद्द-ए-नज़र बे-कैफ़ 'मंज़र' हो गया
इस तरह रंगों को सूरज ने कभी खाया न था