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दब गई क्यूँ मिरी आवाज़ कहो तो कह दूँ | शाही शायरी
dab gai kyun meri aawaz kaho to kah dun

ग़ज़ल

दब गई क्यूँ मिरी आवाज़ कहो तो कह दूँ

कौसर सीवानी

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दब गई क्यूँ मिरी आवाज़ कहो तो कह दूँ
इस भरी बज़्म में वो राज़ कहो तो कह दूँ

मेरे नग़्मों को सर-ए-बज़्म तरसने वालो
बे-सदा क्यूँ है मिरा साज़ कहो तो कह दूँ

अपने मोहसिन का भी एहसान भुलाने वाले
किस ने बख़्शा तुम्हें एज़ाज़ कहो तो कह दूँ

कैसे ग़ैरों को मिला गोशा-ए-पिन्हाँ का सुराग़
कौन निगराँ था दग़ाबाज़ कहो तो कह दूँ

जब तुम्हें अपनी ग़रज़ थी तो मिला दी तुम ने
किस की आवाज़ में आवाज़ कहो तो कह दूँ

जिस्म-ए-इंकार पे इक़रार का रहता है लिबास
उन की गुफ़्तार का अंदाज़ कहो तो कह दूँ

मुझ में 'कौसर' थी निहाँ ताक़त-ए-परवाज़ मगर
किस ने काटे पर-ए-पर्वाज़ कहो तो कह दूँ