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दावा-ए-दीद किया जब किसी शैदाई ने | शाही शायरी
dawa-e-did kiya jab kisi shaidai ne

ग़ज़ल

दावा-ए-दीद किया जब किसी शैदाई ने

ऋषि पटियालवी

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दावा-ए-दीद किया जब किसी शैदाई ने
चार-सू आग छिड़क दी तिरी रा'नाई ने

लाख धोके दिए रंगीनी-ओ-रानाई ने
आँख उठा कर भी न देखा तिरे शैदाई ने

उन मरीज़ान-ए-मोहब्बत की दवा है न दुआ
कर दिया जिन पे करम तेरी मसीहाई ने

डूब कर दिल ने किया ग़र्क़ सफ़ीना आख़िर
बहर-ए-उल्फ़त में डुबोया नहीं गहराई ने

नक़्श-ए-पा उन का मगर सर को मयस्सर न हुआ
दर-ब-दर ख़्वार किया शौक़-ए-जबीं-साई ने

संग हैं गुहर-ए-गुहर जिन की ज़िया बख़्शी से
बज़्म-ए-हस्ती में कुछ ऐसे भी तो हैं आईने

हम ने देखा तो ज़माने की नज़र उस पे उठी
भर दिया रंग तमाशे में तमाशाई ने

देखने ही न दिया उन को 'रिशी' महफ़िल में
कुछ तहय्युर ने कुछ अंदेशा-ए-रुस्वाई ने