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दामन की फ़िक्र है न गरेबाँ की फ़िक्र है | शाही शायरी
daman ki fikr hai na gareban ki fikr hai

ग़ज़ल

दामन की फ़िक्र है न गरेबाँ की फ़िक्र है

अब्दुल मतीन नियाज़

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दामन की फ़िक्र है न गरेबाँ की फ़िक्र है
अहल-ए-वतन को फ़ित्ना-ए-दौराँ की फ़िक्र है

गुलशन की फ़िक्र है न बयाबाँ की फ़िक्र है
अहल-ए-जुनूँ को फ़स्ल-ए-बहाराँ की फ़िक्र है

लोगों को अपनी फ़िक्र है लेकिन मुझे नदीम
बज़्म-ए-हयात-ओ-नज़्म-ए-गुलिस्ताँ की फ़िक्र है

हम मक़्तल-ए-हयात में हैं सर-ब-कफ़ मगर
अहल-ए-हवस को अपने दिल-ओ-जाँ की फ़िक्र है

साहिल से दूर रह के है मंज़िल की जुस्तुजू
मौजों की फ़िक्र हम को न तूफ़ाँ की फ़िक्र है

हम को नहीं है फ़िक्र किसी बात की 'नियाज़'
तारीकियों में शम-ए-फ़रोज़ाँ की फ़िक्र है