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दामन-ए-हुस्न में हर अश्क-ए-तमन्ना रख दो | शाही शायरी
daman-e-husn mein har ashk-e-tamanna rakh do

ग़ज़ल

दामन-ए-हुस्न में हर अश्क-ए-तमन्ना रख दो

फ़ितरत अंसारी

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दामन-ए-हुस्न में हर अश्क-ए-तमन्ना रख दो
दीन की राह में हंगामा-ए-दुनिया रख दो

ज़ुल्म के सामने इख़्लास का पर्दा रख दो
नोक-ए-हर-ख़ार पे बर्ग-ए-गुल-ए-रा'ना रख दो

अपनी तारीख़ के औराक़ उलटना हैं अगर
गुलशन-ए-ऐश पे तपता हुआ सहरा रख दो

जिस से वाबस्ता रहे डूबने वाले की उमीद
एक तिनका ही सही तुम लब-ए-दरिया रख दो

तुम जो चाहो कि मिरे लब भी न खुलने पाएँ
मेरे आगे मिरी तक़दीर का चेहरा रख दो

रोज़-ए-रौशन की तरह होंगी मुनव्वर रातें
चंद शो'ले जो सर-ए-बज़्म-ए-तमन्ना रख दो

एक आवाज़ सी आती है हरम से शायद
मय-कदे वालो ज़रा साग़र-ओ-मीना रख दो