दामन-ए-दिल है तार तार अपना
काम कर ही गई बहार अपना
जब से तस्कीन दे गया है कोई
और भी दिल है बे-क़रार अपना
देख कर भी उन्हें न देख सके
रह गया शौक़-ए-इंतिज़ार अपना
जुस्तुजू आ गई सर-ए-मंज़िल
रह गया राह में ग़ुबार अपना
वो नज़र फिर गई तो क्या होगा
उस नज़र तक है ए'तिबार अपना
इस की हर जुम्बिश-ए-नज़र के साथ
रुख़ बदलती गई बहार अपना
हर-नफ़स है उन्हीं की याद 'इक़बाल'
ग़म है कैसा सदा-बहार अपना
ग़ज़ल
दामन-ए-दिल है तार तार अपना
इक़बाल सफ़ी पूरी