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दाइम पड़ा हुआ तिरे दर पर नहीं हूँ मैं | शाही शायरी
daim paDa hua tere dar par nahin hun main

ग़ज़ल

दाइम पड़ा हुआ तिरे दर पर नहीं हूँ मैं

मिर्ज़ा ग़ालिब

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दाइम पड़ा हुआ तिरे दर पर नहीं हूँ मैं
ख़ाक ऐसी ज़िंदगी पे कि पत्थर नहीं हूँ मैं

I do not lie embedded, ensconced upon your door
I am not merely a stone, such life I do abhor

क्यूँ गर्दिश-ए-मुदाम से घबरा न जाए दिल
इंसान हूँ पियाला ओ साग़र नहीं हूँ मैं

why shouldn't life's revolutions agitate my heart?
I'm human, not a chalice to be passed around the floor.

या-रब ज़माना मुझ को मिटाता है किस लिए
लौह-ए-जहाँ पे हर्फ़-ए-मुकर्रर नहीं हूँ मैं

Lord what reason that this world seeks to erase me so
I'm not a superfluous word that's been written before

हद चाहिए सज़ा में उक़ूबत के वास्ते
आख़िर गुनाहगार हूँ काफ़र नहीं हूँ मैं

Viciousness, in punishment, needs to be restrained
after all it's sin, not heresy I answer for

किस वास्ते अज़ीज़ नहीं जानते मुझे
लअ'ल ओ ज़मुर्रद ओ ज़र ओ गौहर नहीं हूँ मैं

Neither rubies, gems, nor gold nor pearls, I am therefore
is it for this reason that you choose to thus ignore

रखते हो तुम क़दम मिरी आँखों से क्यूँ दरेग़
रुत्बे में महर-ओ-माह से कम-तर नहीं हूँ मैं

why do you have to keep your feet hidden from my eyes?
less in stature than the sun and moon I am not for sure

करते हो मुझ को मनअ-ए-क़दम-बोस किस लिए
क्या आसमान के भी बराबर नहीं हूँ मैं

what reason that you now refuse to let me kiss your feet
am I not equal even to the heavens anymore

'ग़ालिब' वज़ीफ़ा-ख़्वार हो दो शाह को दुआ
वो दिन गए कि कहते थे नौकर नहीं हूँ मैं

Ghalib you should praise the king, dependent that you are
You used to say "I do not serve", those were the days of yore