EN اردو
दाइम हो उस के हुस्न की नुज़हत ख़ुदा करे | शाही शायरी
daim ho uske husn ki nuzhat KHuda kare

ग़ज़ल

दाइम हो उस के हुस्न की नुज़हत ख़ुदा करे

जावेद जमील

;

दाइम हो उस के हुस्न की नुज़हत ख़ुदा करे
और मुझ में ये जुनून की लज़्ज़त ख़ुदा करे

संजीदगी का रंग हो थोड़ा सा प्यार में
बाक़ी मगर हो रंग-ए-शरारत ख़ुदा करे

मुद्दत से कोई तीर न ख़ंजर न संग-ओ-ख़िश्त
दुश्मन हो मेरा ज़िंदा सलामत ख़ुदा करे

ग़मगीन हूँ लतीफ़े हैं फिर भी ज़बान पर
क़ाएम रहे ये ज़ौक़-ए-ज़राफ़त ख़ुदा करे

पोशीदा हैं गुनाहों में बर्बादियों के राज़
नाज़िल हो दिल पे हर्फ़-ए-नदामत ख़ुदा करे

मजमे' की कैफ़ियात का मंज़र अजीब था
बढ़ता रहे ये ज़ोर-ए-ख़िताबत ख़ुदा करे

कहते हैं अपनी औरों की सुनते नहीं हैं लोग
हो जाए काश शौक़-ए-समाअत ख़ुदा करे

कहते हैं अहल-ए-दीन कि तक़्वा ही दीन है
वो जान जाएँ काश इक़ामत ख़ुदा करे

मेरी दुआ यही है शरीक-ए-सफ़र के साथ
आ जाए हम को हुस्न-ए-निज़ामत ख़ुदा करे

तख़्लीक़ है बुलंदी-ए-अफ़्कार की अता
आए तिरे कलाम में रिफ़अत ख़ुदा करे

हर शख़्स काश सीख ले आदाब प्यार के
दिल में न हो किसी के कुदूरत ख़ुदा करे

'जावेद' छीन सकता है क्या कोई उस का रिज़्क़
जिस शख़्स की हमेशा किफ़ालत ख़ुदा करे