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दाग़ों से दिल-ओ-सीना के अफ़रोख़्ता-जाँ हूँ | शाही शायरी
daghon se dil-o-sina ke afroKHta-jaan hun

ग़ज़ल

दाग़ों से दिल-ओ-सीना के अफ़रोख़्ता-जाँ हूँ

आशिक़ अकबराबादी

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दाग़ों से दिल-ओ-सीना के अफ़रोख़्ता-जाँ हूँ
गो मैं चमन-ए-ताज़ा हूँ पर वक़्फ़-ए-ख़िज़ाँ हूँ

पहलू में अगर दिल है तो तू दिल में है मेरे
गो नंंग-ए-ख़लाएक़ हूँ मगर जान-ए-जहाँ हूँ

जिस ख़ाक पे मैं बैठ गया फ़ित्ना उठाया
किस सर्व-ए-ख़िरामाँ की कफ़-ए-पा का निशाँ हूँ

हमराह तुम्हारे हूँ किसी जा हूँ कहीं हूँ
साया की तरह तुम हो जहाँ मैं भी वहाँ हूँ

यारब हो बुरा वहशत दिल का कि नहीं चैन
जब ख़ाक हुआ मर के तो अब रेग-ए-रवाँ हूँ

क्या ज़ीस्त है ये ख़ाक मिरी आशिक़-ए-नाशाद
गह मसरफ़-ए-फ़रियाद हूँ गह वक़्फ़-ए-फ़ुग़ाँ हूँ