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दाग़-ए-सीना मरकज़-ए-तनवीर है | शाही शायरी
dagh-e-sina markaz-e-tanwir hai

ग़ज़ल

दाग़-ए-सीना मरकज़-ए-तनवीर है

महताब अालम

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दाग़-ए-सीना मरकज़-ए-तनवीर है
दिल का छाला चाँद की तस्वीर है

ज़िंदगी किया है कोई समझाए तो
ख़्वाब है या ख़्वाब की ताबीर है

चैन से ज़िंदाँ में बैठे अब जुनूँ
पाँव में चक्कर नहीं ज़ंजीर है

फूँक देंगी नफ़रतें घर आप का
नाम दरवाज़े पे क्यूँ तहरीर है

घर का इक नक़्शा बना लेती है रोज़
ये जो दिल में हसरत-ए-तामीर है

हम अमाँ पाते थे जिस के साए में
वो शजर अब धूप की तस्वीर है

किस के वा'दे पर करें हम ए'तिबार
किस के माथे पे वफ़ा तहरीर है