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दाग़-ए-ग़म-ए-फ़िराक़ मिटाया न जाएगा | शाही शायरी
dagh-e-gham-e-firaq miTaya na jaega

ग़ज़ल

दाग़-ए-ग़म-ए-फ़िराक़ मिटाया न जाएगा

पंडित जवाहर नाथ साक़ी

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दाग़-ए-ग़म-ए-फ़िराक़ मिटाया न जाएगा
जलता हुआ चराग़ बुझाया न जाएगा

इंसाफ़ अपना दावर-ए-महशर से हो तो हो
क़ज़िया किसी से दिल का चुकाया न जाएगा

रोको न चश्म-ए-शोख़ को मेरी तरफ़ से तुम
आँखें हैं दिल नहीं कि मिलाया न जाएगा

है दिल में उन के ग़ैर की सूरत बसी हुई
दिल में भी अब तो उन को बिठाया न जाएगा

है तेरी याद दिल में मरे नक़्श-कल-हजर
दिल से तिरा ख़याल मिटाया न जाएगा

'साक़ी' है तुम को मिलने की जिस गुल की आरज़ू
उस से सर-ए-मज़ार भी आया न जाएगा