दाग़-ए-ग़म-ए-फ़िराक़ मिटाया न जाएगा
जलता हुआ चराग़ बुझाया न जाएगा
इंसाफ़ अपना दावर-ए-महशर से हो तो हो
क़ज़िया किसी से दिल का चुकाया न जाएगा
रोको न चश्म-ए-शोख़ को मेरी तरफ़ से तुम
आँखें हैं दिल नहीं कि मिलाया न जाएगा
है दिल में उन के ग़ैर की सूरत बसी हुई
दिल में भी अब तो उन को बिठाया न जाएगा
है तेरी याद दिल में मरे नक़्श-कल-हजर
दिल से तिरा ख़याल मिटाया न जाएगा
'साक़ी' है तुम को मिलने की जिस गुल की आरज़ू
उस से सर-ए-मज़ार भी आया न जाएगा
ग़ज़ल
दाग़-ए-ग़म-ए-फ़िराक़ मिटाया न जाएगा
पंडित जवाहर नाथ साक़ी