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दाद मिलती नज़र-ए-अहल-ए-नज़र से पहले | शाही शायरी
dad milti nazar-e-ahl-e-nazar se pahle

ग़ज़ल

दाद मिलती नज़र-ए-अहल-ए-नज़र से पहले

मिर्ज़ा अल्ताफ़ हुसैन आलिम लखनवी

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दाद मिलती नज़र-ए-अहल-ए-नज़र से पहले
मौत आती जो कहीं दिल को जिगर से पहले

तसफ़िया करते न हंगाम-ए-सहर से पहले
पूछ लेते किसी मायूस नज़र से पहले

मेरा मरना तुम्हें हो जाएगा ख़ुद ही मालूम
दिल तड़प उट्ठेगा सीने में ख़बर से पहले

तुम तो कहते थे कि मैं दर्द का क़ाइल ही नहीं
कौन चीख़ा मिरे नालों के असर से पहले

नाम जिस चीज़ का है मौत जहाँ में मशहूर
वाक़िआ' ये तो हुआ दर्द-ए-जिगर से पहले

आज की रात तो कुछ और ख़बर देती है
हो मुनासिब तो चले आना सहर से पहले

एक बिजली सी मिरी आँखों के अंदर कौंदी
और इरादा जो हुआ अज़्म-ए-सफ़र से पहले

रोई मजबूरियों पर चारागरों की क़िस्मत
मर गया आप का बीमार सहर से पहले

मैं भी समझा हूँ तिरे नक़्श-ए-क़दम का मतलब
मैं भी गुज़रा था इसी राहगुज़र से पहले