चूर सदमों से हो बईद नहीं
आबगीना है दिल हदीद नहीं
मय-कशी क्या करे भला ज़ाहिद
मग़फ़िरत की उसे उमीद नहीं
चार-सू है अंधेरा आँखों में
चार दिन से जो उस की दीद नहीं
मेरे आगे मिली वो ग़ैरों से
है मोहर्रम मुझे ये ईद नहीं
क़त्ल आलम है तेरे अबरू पर
कोई तलवार से शहीद नहीं
अपने दिल से मुझे इरादत है
मैं किसी पीर का मुरीद नहीं
दिल किसी से लगे तो क्या छूटे
कोई इस क़ुफ़्ल की कलीद नहीं
देख ले मर के सख़्ती-ए-सकरात
सदमा-ए-हिज्र से शदीद नहीं
वस्ल-ए-जानाँ है सीग़ा-ए-तोहमत
कि मुजर्रद हैं हम मज़ीद नहीं
इश्क़ क्या दर्द है ख़ुदावंदा
कोई दारू-दवा मुफ़ीद नहीं
नहनो-अक़रब दलील है ऐ 'बहर'
यार नज़दीक है बईद नहीं
ग़ज़ल
चूर सदमों से हो बईद नहीं
इमदाद अली बहर