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चूर अना कर दी पत्थर-पन तोड़ दिया | शाही शायरी
chur ana kar di patthar-pan toD diya

ग़ज़ल

चूर अना कर दी पत्थर-पन तोड़ दिया

सौरभ शेखर

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चूर अना कर दी पत्थर-पन तोड़ दिया
आग ने कुछ पल में पिघला कर लोहा मोड़ दिया

फ़िक्र मुझे अपने बच्चों के सर की होती थी
जर्जर घर था सच्चाई का आख़िर छोड़ दिया

अपने चारों ओर उठा दी मैं ने दीवारें
इक सुराख़ मगर माज़ी का उस में छोड़ दया

नोच घरौंदा भी न भरा जब उस बंदर का जी
उस ने फिर चिड़िया का इक इक अण्डा फोड़ दिया

पीछे पीछे घर आ जाते हैं कुछ पालतू डर
लाख उन्हें मैं ने रस्ता भटका कर छोड़ दिया

रोज़-ओ-शब के इम्तिहान से आजिज़ आ कर आज
फाड़ दिया परचा मैं ने उत्तर मोड़ दिया